भक्तप्रह्लाद की कहानी । Devotional story of Bhakt Pahlad and Bishnu Bhagwan ।

भक्त प्रह्लाद की कहानी

पृष्ठभूमि:

प्राचीन समय में, हिरण्यकशिपु नामक एक शक्तिशाली असुर राजा था जो ब्रह्मांड पर शासन करता था। वह देवताओं का कट्टर शत्रु था और खुद को अजेय मानता था। वह चाहता था कि हर कोई, यहां तक कि उसका अपना पुत्र प्रह्लाद भी, उसे परमेश्वर के रूप में पूजें।

मुख्य पात्र:

1. हिरण्यकशिपु: असुर राजा।

2. प्रह्लाद: हिरण्यकशिपु का भक्त पुत्र।

3. भगवान विष्णु: ब्रह्मांड के रक्षक।

4. भगवान नरसिंह: भगवान विष्णु का नर-सिंह अवतार।

कहानी:

हिरण्यकशिपु ने कठोर तपस्या की और भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्त किया, जिससे वह लगभग अजेय हो गया। उसे न तो कोई मनुष्य मार सकता था और न ही कोई पशु, न दिन में और न रात में, न पृथ्वी पर और न आकाश में, और न ही किसी हथियार से। इस वरदान के साथ, हिरण्यकशिपु अहंकारी और क्रूर हो गया और उसने सभी से केवल उसकी पूजा करने की मांग की।

प्रह्लाद, हालांकि, बचपन से ही भगवान विष्णु के परम भक्त थे। अपने पिता के प्रयासों के बावजूद, प्रह्लाद ने विष्णु का नाम जपना जारी रखा और अपने साथी छात्रों को भगवान की महानता के बारे में बताया। हिरण्यकशिपु को बहुत क्रोध आया और उसने प्रह्लाद को मारने के लिए विभिन्न तरीकों का प्रयास किया, लेकिन भगवान विष्णु की दिव्य सुरक्षा ने हर बार प्रह्लाद की रक्षा की। हिरण्यकशिपु के प्रयासों में शामिल थे:

1. प्रह्लाद को पहाड़ी से फेंकना: प्रह्लाद सुरक्षित रहे।

2. जहर देना: जहर अमृत बन गया।

3. हाथियों से कुचलवाना: हाथी उन्हें चोट नहीं पहुँचा सके।

4. साँपों के गड्ढे में फेंकना: साँपों ने नहीं काटा।

5. आग में जलाना: उसकी बुआ होलिका, जो आग में नहीं जल सकती थी, प्रह्लाद को लेकर जलती आग में बैठ गई। प्रह्लाद सुरक्षित रहे और होलिका जलकर मर गई।

इन कठिनाइयों के बावजूद, प्रह्लाद की भक्ति अटूट रही।

एक दिन, गुस्से में आकर, हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद से पूछा कि उसका विष्णु कहाँ है। प्रह्लाद ने उत्तर दिया कि भगवान विष्णु सर्वत्र हैं, यहाँ तक कि उनके पास के खंभे में भी। क्रोधित होकर, हिरण्यकशिपु ने गदा से खंभे पर प्रहार किया। उनके आश्चर्य के लिए, भगवान विष्णु नरसिंह रूप में प्रकट हुए, जो आधे मनुष्य और आधे सिंह का रूप था। भगवान नरसिंह ने वरदान की शर्तों को पूरा किया: वे संध्या समय (न दिन, न रात), चौखट पर (न अंदर, न बाहर) प्रकट हुए, और अपने नुकीले पंजों (न हथियार, न औजार) से हिरण्यकशिपु को मारा, जो उनकी गोद में थे (न पृथ्वी पर, न आकाश में)।

प्रह्लाद को राजा बनाया गया और उन्होंने ज्ञान और भक्ति के साथ शासन किया। उनकी कहानी सच्चे भक्तों पर दैवीय कृपा और विश्वास की शक्ति की गवाही देती है।

नैतिक शिक्षा:

भक्त प्रह्लाद की कहानी सिखाती है कि अडिग विश्वास और भक्ति सबसे बड़ी कठिनाइयों को भी पार कर सकती है। यह यह भी दर्शाती है कि सच्चे विश्वासियों की रक्षा और समर्थन हमेशा दैवीय कृपा द्वारा की जाएगी, चाहे वे किसी भी चुनौती का सामना करें।

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