नींव की ईंट
1. पूर्ण वाक्य में उत्तर दो
(क) रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म कहां हुआ था ?
उत्तरः बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के अंतर्गत बेनीपुर नामक गांव में हुआथा।
(ख) बेनीपुरी जी को जेल की यात्राएं क्यों करनी पड़ी थी ?
उत्तरः भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सक्रिय सेनानी के रूप में जुड़े होने और अंग्रेजो के खिलाफ आवाज उठाने के जुर्म में जेल की यात्राएं करनी पड़ी थी।
(ग) बेनीपुरी जी का स्वर्गवास कब हुआ था?
उत्तर : 1968 मैं।
(घ) चमकीली, सुंदर, सुघड़ इमारत वस्तुतः किस पर टिकी होती है? उत्तरः अपनी नींव पर टिकी होती है।
( ड०) दुनिया का ध्यान सामान्यतः किस पर जाता है?
उत्तरः दुनिया का ध्यान सामान्यतः ऊपरी आवरण और चमक पर जाता है।
(ङ) नींव की ईंट को हिला देने का परिणाम क्या होगा ?
उत्तरः इसका परिणाम नींव के ऊपर जितने भी इमारते हैं वें सभी धारा शाही होकर गिर पड़ेंगे।
(च) सुंदर सृष्टि हमेशा ही क्या खोजती है ?
उत्तरः बलिदान खोजती है।
(छ) लेखक के अनुसार गिरिजाघरों के कलश वस्तुत: किनकी शहादत से चमकते हैं?
उत्तरः उन अनेक अनाम लोगों की शहादत से चमकते हैं, जिन्होंने धर्म के प्रचार-प्रसार में खुद को समर्पित कर दिया।
(ज) आज किसके लिए चारों ओर होड़ा-होड़ी मची है ?
उत्तरः आज इमारत का कंगूरा बनने, यानी अपने आपको प्रसिद्ध करने के लिए चारों और होड़ा-होड़ी मची है।
(झ) पठित निबंध में ‘सुंदर इमारत ‘ का आशय क्या है?
उत्तरः नया सुंदर समाज।
2. अति संक्षिप्त उतर दो (लगभग 25 शब्दों)
(क) मनुष्य सत्य से क्यों भागता है?
उत्तरः सत्य हमेशा कठोर अर्थात कड़वा होता है। अक्सर सत्य झूठ का पर्दाफाश कर देता है। कठोरता और भद्दापन एक साथ पनपते हैं। इसी कारण मनुष्य कठोरता से बचने और भद्देपन से मुख मोड़ने के लिए सत्य से भागता है।
(ख) लेखक के अनुसार कौन सी ईंट अधिक धन्य है ?
उत्तरः लेखक के अनुसार वह ईंट जो इमारत को मजबूत करने और बाकी ईंटो को आसमान छूने का मौका देते हुए खुद जमीन के सात हाथ नीचे जाकर गड़ जाती है और खुद को दूसरों के लिए बलिदान कर देती है, वह ईंट धन्य है।
(ग) नींव की ईंट की क्या भूमिका होती है ?
उत्तरः नींव की ईंट ही वह ईंट है, जो इमारत की मजबूती और दृढ़ता को बनाएं रखती है। बाकी सभी ईंट नींव की ईंट पर ही निर्भर करती है। इसीलिए हम यह कह सकते हैं कि नींव की ईंट की भूमिका ही सबसे महत्वपूर्ण होती है।
(घ) कंगूरे की ईंट की भूमिका स्पष्ट करो।
उत्तरः कंगूरे की ईंट इमारत की ऊपरी खूबसूरती को दर्शाती है, तथा वह अपनी बनावट एवं खूबसूरती से लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचने में कामयाब होती है।
( ड०) शहादत का लाल सेहरा कौन-से लोग पहनते हैं और क्यों?
उत्तरः शहादत का लाल सेहरा वे लोग पहनते हैं, जो देश के लिए अपना अस्तित्व निछावर कर देते हैं। ताकि बाकी लोग इस संसार का लुफ्त अच्छी तरह उठा सके।
(च) लेखक के अनुसार ईसाई धर्म को किन लोगों ने अमर बनाया ?
उत्तरः लेखक के अनुसार ईसाई धर्म को उन लोगों ने अमर बनाया जिन्होंने ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार में स्वयं को बलिदान कर दिया। बिना स्वार्थ के वे हंसते-हंसते सूली पर चढ़ गए, कई तो जंगलों में भटकते हुए जंगली जानवरों का शिकार बन गए। अपने बलिदान के बल पर उन्होंने ईसाई धर्म को अमर बनाया। उन्होंने कभी नाम कमाने या प्रसिद्ध होने की चाहत नहीं रखी। आज इसाई धर्म उन्हीं की देन है।
(छ) आज देश के नौजवानों के समक्ष चुनौती क्या है?
उत्तरः आज हमारे देश के नौजवानों के सामने यह चुनौती है कि वे समाज का नव निर्माण करें और निर्माण करते वक्त इमारत का कंगूरा बनने की बजाएं नीव की ईंट बनने का इरादा एवं साहस रखें। ताकि उनके हाथों एक सुंदर भविष्य का निर्माण हो ।
प्रश्न 3. संक्षिप्त उत्तर दो (लगभग 50 शब्दों में)
(क) मनुष्य सुंदर इमारत के कंगूरे को तो देखा करते हैं, पर उसकी नींव की ओर उनका ध्यान क्यों नहीं जाता ?
उत्तरः सुंदरता हमेशा दूसरों को अपनी और आकर्षित करता है । इमारत के कंगूरे भी देखने में सुंदर लगते हैं। क्योंकि वह सबसे ऊपर रहकर अपनी आकृति, बनावट और खूबसूरती से सब का ध्यान खींचने में कामयाब होता है।लेकिन नींव की ईंट जो सुंदर कंगूरे के नीचे गड़ा होता हैं उसे कोई नहीं देखता अतः वह खुद भी नहीं चाहता की उसे कोई देखें, उसकी प्रशंसा करें। यही कारण है कि मनुष्य का ध्यान नींव की ईंट की ओर नहीं बल्कि कंगूरे की ओर जाता है।
(ख) लेखक ने कंगूरे के गीत गाने के बजाय नींव के गीत गाने के लिए क्यों आह्वान किया है?
उत्तरः कोई भी इमारत हो उसकी मजबूती नींव की ईंट पर निर्भर करती है। नींव की ईंट जितना मजबूत होगा इमारत भी उतनी ही मजबूती से खड़ा रहेगा। लेकिन विडंबना यह है कि जिस ईंट के ऊपर वह सुंदर आलीशान भवन खड़ा है उसकी कोई भी प्रशंसा नहीं करता, बल्कि इमारत की कंगूरे को खूबसूरती से निहार कर सब उसकी तारीफ करते हैं। असलियत में नींव की ईंट की भूमिका से ही आज कंगूरे का वजूद है। यही कारण है कि की ईंट की भूमिका से ही आज कंगूरे का वजूद है। यही कारण है कि लेखक ने कंगूरे के गीत गाने के बजाय नींव के गीत गाने के लिए सभी को आह्वान किया है।
(ग) सामान्यतः लोग कंगूरे की ईंट बनना तो पसंद करते हैं, परंतु नींव की ईंट बनना क्यों नहीं चाहते?
उत्तरः इमारत पर लगे कंगूरे को देखकर लोग प्रसन्न हो जाते हैं और उसकी प्रशंसा करने लगते हैं। अर्थात यहां कहने का तात्पर्य यह है कि लोग प्रसिद्ध होने या प्रशंसा पाने या अन्य किसी स्वार्थ के लिए समाज में लालच में आकर अपना योगदान बनाए रखना चाहता है। लेकिन समाज के लिए वह त्याग या बलिदान देने के लिए तैयार नहीं है, क्योंकि उसे पता है नींव की ईंट बनने पर उसका कोई लाभ या वजूद नहीं रहेगा। इसीलिए लोग नींव की ईंट की बजाय कंगूरे की ईंट बनना पसंद करते हैं।
(घ) लेखक ईसाई धर्म को अमर बनाने का श्रेय किन्हे देना चाहता है और क्यों?
उत्तर: लेखक ईसाई धर्म को अमर बनाने का श्रेय उन अनजान, बेनाम लोगों को देना चाहते हैं जिन्होंने ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए बिना किसी स्वार्थ के खुद को बलिदान कर दिया। लेखक उन्हें इसलिए श्रेय देना चाहते है, क्योंकि उनके बलिदान हेतु आज ईसाई धर्म का वजूद है। उन्होंने बिना किसी लालच और स्वार्थ के अपने को ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार में इस कदर सौंप दिया कि उनमें से कई लोग तो सूली पर भी चढ़ गए और कई लोग तो जंगल में जंगली जानवरों का शिकार बन गए। उन्होंने ऐसा सिर्फ धर्म के प्रचार तथा धर्म को अमर बनाने के लिए क्या ।
(ड.) हमारा देश किनके बलिदानों के कारण आजाद हुआ ?
उत्तर: हमारा देश उन बलिदानों के कारण आजाद हुआ जिन्होंने बिना किसी स्वार्थ एवं लोभ के अपने देश के नाम खुद को सौंप दिया। उनमें से कईयों के नाम आज इतिहास में दर्ज है, परंतु हमारे भारत के कोने कोने में हजारों ऐसे भी लोग थे, जिनका ना ही समाज में नाम आया ना ही उन्होंने समाज में खुद को प्रसिद्ध करने की चाह रखी। वें हजारों तो बेनाम रहकर भी देश के लिए मर मिटे। उन्हीं अनाम लोगों के बलिदानों के कारण आज हमारा देश आजाद है।
(छ) भारत के नव-निर्माण के बारे में लेखक ने क्या कहा है?
उत्तर: भारत के नव-निर्माण के बारे में लेखक ने नौजवानों को आह्वान किया है कि वे अपने सच्चे मन से देश की तरक्की के लिए अपना सहयोग एवं योगदान दें।आज हमारे देश में लाखों गांव, हजारों सेहरो और कारखानों का नव-निर्माण करना जरूरी है, तभी भारत प्रगति की राह पर चल पाएगा। लेखक यह भी कहते हैं कि इस तरक्की में वे शासकों से कोई उम्मीद भी नहीं रखते। क्योंकि वे शासक देश की नहीं बल्कि अपने स्वार्थ की पूर्ति हेतु काम करते हैं। इसलिए लेखक सिर्फ उन्हीं नौजवानों पर विश्वास रखते हैं जो खुद को इस कार्य में अपने आप को सौंप दें। लोभ, प्रशंसा नाम के चक्कर में ना फंसे अपने लक्ष्य पर ही ध्यान दें तब जाकर हमारा देश प्रगति की राह पर चल पाएगा। इसीलिए लेखक ने इस पाठ के जरिए नवयुवकों को कंगूरा बनने के बजाय नींव की ईंट बनकर देश का नाम रोशन करने की सलाह दी है।
(ज) ‘नींव की ईंट’ शीर्षक निबंध का संदेश क्या है ?
उत्तर : ‘नींव की ईंट’ निबंध से देश के नवयुवकों को नव निर्माण के लिए प्रेरणा दिया है । इमारत के कंगुरों का प्रशंसा से भविष्य में देश का कोई लाभ नहीं होगा जिससे नींव की ईंट से होती है। जिस प्रकार नीव के ईंट के बलिदान से इमारत खड़ा हुआ है इस प्रकार देश के नवयुवकों के बलिदान से नये समाज बन सकते है । जिससे राष्ट्र को मजबूती प्रदान कर सकते है।
प्रश्न 4. सम्यक उत्तर दो (लगभग 100 शब्दों में)
(क) नींव की ईंट’ का प्रतीकार्थ स्पष्ट करो ।
उत्तर : पाठ के मूल : ‘नींव की ईंट’ बेनीपुरी जी के रोचक एवं प्रेरक ललित निबंधों में अन्यतम है। ‘नींव की ईंट का प्रतीकार्थ है समाज का अनाम शहीद, बिना किसी यश-लोभ के समाज के नव-निर्माण हेतु आत्म- बलिदान के लिए प्रस्तुत है। सुंदर इमारत का आशय है- नया सुंदर समाज । कंगुरे की ईंट का प्रतीकार्थ है-समाज का यश- लोभी सेवक, जो प्रसिद्ध, प्रशंसा अथवा अन्य किसी स्वार्थवश समाज का काम करना चाहता है। निबंधकार के अनुसार भारतीय स्वाधीनता आंदोलनके सैनिकों नींव की तरह थे, जबकि स्वतंत्र भारत के शासकों कंगुरे की ईंट निकले। भारतवर्ष के सात लाख गांवों, हजारों शहरों और सैकड़ों कारखानों के नव- निर्माण हेतु नींव की ईंट बनाने के लिए तैयार लोगों की जरूरत है। परंतु विडंबना यह है कि आज कंगुरे की ईंट बनाने के लिए चारों ओर होड़ा-होड़ी मची है, नींव की ईंट बनने की कामना लुप्त हो रही है। इस रूप में भारतीय समाज का नव निर्माण संभव नहीं। इसलिए निबंधकार ने देश के नौजवानों से आह्वान किया है कि वे नींव की ईंट बनने की कामना लेकर आगे आएँ और भारतीय समाज के नव-निर्माण में चुपचाप अपने को खपा दें
(ख) ‘कंगूरे की ईंट’ के प्रतीकार्थ पर सम्यक प्रकाश डालो ।
उत्तर : कंगूरे की ईंट का अर्थ- यश देने वाले कार्य करना। साधारणतः मनुष्य चाहते है बिना परिश्रमतथा चुपचाप मरने के बजाय यश लाभ करना। इसी कारण स्वतंत्रता के बाद कुछ लोगों ने यह, पदतथा धन के लिए होड़ा-होड़ों में लग गये। और बाद में लोगों ने इस पर अधिक आकर्षित हुए थे, वेदेश के लिये कोई काम करना नहीं चाहते । कंगुरे की ईंट समाज के ऊँचे पदों के काम करके यशकमाने वाले लोगों को प्रतिनिधित्व करते है। लेखक इससे उजागर करना चाहता है कि समाज मजबूती पर मौन बलिदान देनेवाले से अधिक सम्मान ऊँचे पद पर सुशोभित लोगों को मिलता है। हमें चाहिए कि समाज के नव निर्माण के लिए मौन रूप से बलिदान करने वालों को प्रोत्साहन देऔर उन्हीं का योगदान भी करें। कंगूरे वालों का नहीं।
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(ग) ‘हाँ, शहादत और मौन मूक ! समाज की आधारशिला यही होती है’ का आशय बताओ
उत्तर : “शहादत और मौन – मूक”, को ही समाज के आधारशिला माना जाता है। क्योंकि इसी से हीसमाज निर्माण होती है। यदि समाज में चुपचाप काम करने वाले लोग न होता तो कोई काम नही होसकता। आज भारत में हजारों शहरों और कारखानों का निर्माण होता रहता है। नई समाज निर्माण होती रहती है। कोई शासक अकेले यह नहीं कर सकता। इसके लिए चाहिए ऐसे नौजवान जोअपने आपको चुपचाप इस काम में सांप दे। अतः अब यह स्पष्ट है कि मौन बलिदान ही समाज की वास्तविक आधारशिला हैं ।
प्रश्न 5. सप्रसंग व्याख्या करो
(क) हम कठोरता से भागते हैं, भद्देपन से मुख मोड़ते हैं, इसीलिए सच से भी आते हैं”।
उत्तर: संदर्भ- प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी पाठ्य-पुस्तक ‘आलोक भाग – 2’ अंतर्गत निबंधकार रामवृक्ष बेनीपुरी जी द्वारा रचित ‘नींव की ईंट’ पाठ से
प्रसंग – इन पंक्तियों के जरिए लेखक ने सत्य की कठोरता और सच्चाई से भागता है उसका जिक्र किया गया है।
वाख्या- मनुष्य का स्वभाव रहा है कि, वह सब कुछ आसानी से पाना चाहता है। कठोरता से पलायन करने की आदत उसे हमेशा से ही रही है। विडंबना यह है कि आज आसान रास्ता अपनाने के चक्कर में सत्य का मार्ग छोड़ झूठ, ठग आदि का सहारा लिया जा रहा है। सभी को पता है कि सत्य कठोर होता है। सत्य का सामना करना चुनौती भरा है। इसीलिए वे सत्य से भागने का मौका ढूंढा करते हैं। यहां तक कि मनुष्य कुत्सित एवं बदसूरत चीजों से भी अपना मुंह मोड़ लेते हैं। उन्हें यह सब पसंद नहीं। उन्हें तो सिर्फ सुंदर चीजों की कदर है। पर सच्चाई यही है कि सच अक्सर कड़वा होता है। इसीलिए मनुष्य कड़वेपन से बचने के लिए सच से भी भागते हैं।
(ख) “सुंदर सृष्टि ! सुंदर सृष्टि, हमेशा बलिदान खोजती है, बलिदान ईंट का हो या व्यक्ति का । “
उत्तर: संदर्भ-प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक आलोक भाग -2 के अंतर्गत निबंधकार रामवृक्ष बेनीपुरी जी द्वारा रचित ‘नींव की ईंट’ नामक निबंध से लिया गया है ।
प्रसंग – इन पंक्तियों में सुंदर सृष्टि के पीछे किस प्रकार बलिदानों की आवश्यकता होती है इसका जिक्र किया गया है।
व्याख्या- यहां सुंदर सृष्टि का आशय सुंदर समाज से है। जिस प्रकार एक सुंदर मकान बनने के पीछे जमीन के नीचे गड़े ठोस ईंटो का अहम भूमिका होता है। ठीक उसी प्रकार एक सुंदर समाज गढ़ने के पीछे उन महान व्यक्तियों का हाथ होता है जिन्होंने अपना बलिदान हंसते-हंसते दे दिया। बलिदान देकर जिस ईंट ने सुंदर महल का निर्माण किया उसका सारा श्रेय ऊपरी मंजिलें अपने नाम कर लेती है। अतः सुंदर इमारत हो या सुंदर समाज वह हमेशा बलिदान मांगती है। चाहे वह कोई ईंट हो या कोई व्यक्ति। अगर हम अपने स्वार्थ के बारे में सोचकर बलिदान से दूर भागेंगे तो सुंदर सृष्टि का निर्माण असंभव है।
( ग ) “ अफसोस, कंगूरा बनने के लिए चारों और होड़ा-होड़ी मची है, नींव की ईंट बनने की कामना लुप्त हो रही है ! “
उत्तर: संदर्भ-प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक आलोक भाग-2 के अंतर्गत निबंधकार रामवृक्ष बेनीपुरी जी द्वारा रचित ‘नींव की ईंट’ नामक निबंध से लिया गया है।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियों में शासक बनने की चाह और समाज सेवक बनने की कामना किस प्रकार लुप्त होती जा रही है उसका वर्णन है।
व्याख्या- आज समाज की स्थिति ऐसी है कि लोग अपने आप को सबसे ऊंचे पायदान पर पाना चाहता है। चारों ओर एक दूसरे से बेहतर बढ़ने की भागदौड़ मची हुई है।यहां कंगूरे का आशय उन्हीं लोभी और शासकों से है, जो अपने स्वार्थ के लिए समाज का काम करना चाहता है। उन्हें समाज से कोई लेना देना नहीं है, वे तो अपनी पूर्ति हेतु समाज से जुड़े होने का ढोंग रचा करते हैं। लेकिन जिस समाज में रहकर वह आज प्रसिद्ध हुए, उस समाज को बनाने में उन महान कार्यकर्त्ताओं और अनाम व्यक्तियों का हाथ है जिन्होंने स्वार्थ को त्यागकर समाज के लिए अपना बलिदान दे दिया। अतः हम यह कह सकते हैं कि वह लोग ही नींव की ईंट है जिसके कारण समाज टिका हुआ है।पर आज कोई भी उस नींव की ईंट बनने की ख्वाहिश नहीं रखता। वह कार्यकर्ता जो पहले अपना बलिदान देने में संकोच नहीं किया करते थे, आज उन जैसे कार्यकर्ता बनने की चाह लुप्त हो रही है।
भाषा एवं व्याकरण ज्ञान
प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों में से अरबी-फारसी के शब्दों का चयन करो
इमारत, नींव, दुनिया, शिवम, जमीन, कंगूरा, मुनहसिर, अस्तित्व, शहादत, कलश, आवरण, रोशनी,
बलिदान, शासक, आजाद, अफसोस, शोहरत ।
उत्तर :
अरबी : दुनिया, मुनहसिर, आवरण, रोशनी, शासक ।
फारसी : इमारत, जमीन, शहादत, आजाद, अफसोस, शोहरत ।
( वाकी संस्कृत से आए हिन्दी शब्द )
प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्दों का प्रयोग करके वाक्य बनाओ
चमकीली, कठोरता, बेतहाशा, भयानक, गिरजाघर, इतिहास ।
उत्तर :
(i) चमकीली : आकाश के चमकीली तारों को देखकर बच्चा स्थिर हो गये
(ii) कठोरता : कठोरता उन्नति का प्रतिशब्द है।
(iii) बेतहाशा : कोई काम करने से सोच समझकर करना चाहिए नहीं तो बेतहाशा हो जायेगा।
(iv) भयानक : जंगल में भयानक जनबर होती है
(V) गिरजाघर : गिरजाघर में प्रार्थना चल रहे हैं।
(vi) इतिहास : इतिहास से ही नये समाज बनाने का प्रेरणा मिलती हैं।
प्रश्न 3. निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध करो
(क) नहीं तो, हम इमारत की गीत नींव की गीत से प्रारंभ करते ।
उत्तर : नहीं तो, हम इमारत के गीत नींव के गीत से प्रारंभ करते ।
(ख) ईसाई धर्म उन्हीं के पुण्य प्रताप से फल-फुल रहे हैं
उत्तर : ईसाई धर्म उनके पुण्य प्रताप से फल-फुल रहा हैं।
(ग) सादियों के बाद नए समाज की सृष्टि की ओर हम पहला कदम बढ़ाए हैं।
उत्तर : सादियों के बाद नए समाज की सृष्टि की ओर हमने पहला कदम बढ़ाए हैं।
(घ) हमारे शरीर पर कई अंग होते हैं।
उत्तर : हमारे शरीर में कई अंग होते हैं ।
(ङ) हम निम्नलिखित रूपनगर के निवासी प्रार्थना करते हैं।
उत्तर : हमें निम्नलिखित रूपनगर के निवासी प्रार्थना करते हैं ।
(च) सव ताजमहल की सौन्दर्यता पर मोहित होते हैं।
उत्तर : सव ताजमहल की सौन्दर्य पर मोहित होते हैं।
(छ) गत रविवार को वह मुंबई जाएगा।
उत्तर : गत रविवार को वह मुंबई गये ।
(ज) आप कृपया हमारे घर आने की ‘कृपा करें।
उत्तर : आप कृपया हमारे घर आए।
(ञ) हमें अभी बहुत बातें सीखना है ।
उत्तर : हमें अभी बहुत बातों को सीखना हैं।
(ट) मुझे यह निबंध पढ़कर आनंद का आभास हुआ।
उत्तर : मैंने यह निबंध पढ़कर आनन्द का आभास पाया।
प्रश्न 4. निम्नलिखित लोकोक्तियों का भाव – पल्लवन करो :
(क) अधजल गगरी छलकत जाए ।
उत्तर : इसका अर्थ यह है कि बह घड़ा हमेशा छलकती रहा है जिसमे जल पुरी तरह भरा नहीं होता। यदि घड़ा पुरी तरह भरा होता तो पानी इधर उधर छलकने का डर नहीं होता। जो घड़ा खाली रहता है, उससे जल के छलकनेका डर रहता है, पानी छलकता रहता है । इसी प्रकार जिस व्यक्ति में गंभीरता और सम्पन्नता रहती है वह बोलता कम है, उचित समय पर सही काम कर देता है। वास्तविकता यह है कि जो काम करता है वह दम्भ नही करता है, जो बरसता है वे गरजता नही, जो नहीं जानता है वे दिखाने का प्रयत्न करता है, किन्तु जो अधाभरा है वह छलक छलकर अपने को व्याप्त करने को कौशिश करता है। इसलिए कहा जाता है – अधजल गगरी छलकत जाए।
(ख) होनहार बिरबान के होत चिकने पात ।
उत्तर: जो बड़ा होकर प्रसिद्ध बनता है बचपन से भी उनका परिचय मिलता है। जैसे शिवाजी के बचपन से ही वीरता का प्रमाण हमको मिले थे। सतंत्र राज्य स्थापना को कल्पना वह बचपन से ही करते थे और आखिर एक दिन सफल भी हुए।
(ग) अब पछताए क्या होत जब चिडिय़ा चुग गई खेत ।
उत्तर : इससे यह कहने की कोशिश करता है कि समय का काम समय पर नहीं करने से क्या नुकसान होता है यह बात सोचकर पछताने से कोई लाभ टोकाने वाला कानाहिए। बिद्यार्थी — –नहा करण स पपा नुकसान होता है पर बात सापकर पछतान सफाइ लाम नही होगा। करने वाला काम समय मे ही करना चाहिए। विद्यार्थी समय पर नहीं पढ़ता, गाड़ी पकड़ने वाले समय पर स्टेसन नहीं पहुंचता तो पछताना जरुर होगा। अतः जो लोग समय का मुल्य को नहीं जानता है वह जीवन में उन्नति नहीं कर सकते।
(घ) जाको राखे साइयाँ मार सके न कोय ।
उत्तर: इससे यह कहा जाता है जिसको भगवान सहायता करते है उसको किसी ने भी मार नहीं सकते। प्रत्येक जीवों को भगवान सहायता करते है, सहारा देती है। जीवित रहने के शक्ति देते है। लेकिन इसके लिए हमे भगवान के नाम लेना चाहिए। हमे भगवान के प्रति विश्वासी होना चाहिए। हमको भी भगवान जीने के शक्ति देते है। इसको कहते हैं जाको राखे साइयाँ मार सके न कोई।
प्रश्न 5. निम्नलिखित शब्दों के दो-दो अर्थ बताओ :
अंबर, उत्तर, काल, नव, पत्र, मित्र, वर्ण, हार, कल, कनक।
उत्तर : अंबर: आकाश, व्योम |
उत्तर : दिशा, जवाब।
काल: समय, नियति।
नव: नया नूतन ।
पत्र : चिठ्ठी, खत।
मित्र : दोस्त, बंधु ।
वर्ण : अक्षर, श्रेणी ।
हार: पराजय, पराभब ।
कल : ध्वनि, वीर्य ।
कनक : स्वर्ण, सोना।
प्रश्न 6. निम्नलिखित शब्दों- जोड़े के अर्थ का अंतर बताओ :
अगम : जहाँ गमन नहीं किया जाता है (अगम्य) ।
दुर्गम : जहाँ गमन करना मुश्किल है।
अपराध : दोष ।
पाप : अधर्म ।
अस्त्र : हथियार
शस्त्र : निक्षेप करनेवाली हथियार
आधि: मानसिक व्याथा ।
व्याधि : बीमार ।
दूखः क्लेश ।
खेद: थकावट
स्त्री : औरत
पत्नी : अर्धांगिनी ।
आज्ञा : आदेश ।
अनुमति : स्वीकृति ।
अहंकार : अभिमान ।
गर्व: समर्थवान अंहभाव